सत्ता के गलियारे से…..रवि अवस्थी(BHOPAL).
** कुछ तो ‘बात’ है
सियासत में बीजेपी के दिग्गज नेता व प्रदेश सरकार में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को कोई सानी नहीं। लोकसभा चुनाव के दौरान अक्षय बम मामले में किरकिरी करा बैठे विजयवर्गीय ने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान से एक बार फिर साबित कर दिया कि उनमें कुछ तो बात है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक नहीं दो बार इंदौर में बने रिकॉर्ड की तारीफ करनी पड़ी।
रविवार को’मन की बात’कार्यक्रम में पीएम ने इंदौर में एक ही दिन में दो लाख पौधे रोपने का जिक्र कर इस प्रयास की सराहना की। इससे पहले वह पत्र लिखकर विजयवर्गीय को बधाई दे चुके हैं। मजाकिया स्वभाव के धनी विजयवर्गीय यदि यह कहते हैं कि वे बड़े नेता हैं और बड़ी भूमिका में हैं,लेकिन मीडिया उन्हें हल्के में लेता है,तो वह गलत नहीं।
** बढ़ा शाह का इंतजार
अमरवाड़ा उप चुनाव जीत कर चौथी बार विधायक बने कमलेश शाह को रावत की तरह मंत्री बनने की उम्मीद है। यूं तो चुनाव के दौरान ही उन्हें मंत्री बनाने की तैयारी थी,लेकिन दांव उल्टा न पड़ जाए,इसके चलते शाह को मंत्री बनाना टाल दिया गया था। उपचुनाव के नतीजे आए एक पखवाड़ा बीतने को है लेकिन शाह का इंतजार लंबा होता जा रहा है।
जानकारों की मानें तो कोशिश इस बात की रही कि मंत्रिमंडल में तीन पद रिजर्व ही रखे जाएं और शाह को एडजस्ट करने एक पद खाली कराया जाए,लेकिन मंत्री नागर सिंह चौहान के विरोध और विधायक अजय सिंह बिसेन की तीखी प्रतिक्रिया ने निर्णायकगणों के कान खड़े कर दिए।
आयतित को नवाजने के फेर में कहीं अपने भी नाराज न हो जाएं। लिहाजा फोकस फिलहाल ‘वेट एंड वॉच’ पर है। निगाह पड़ोसी राज्य उप्र की सियासी गतिविधियों पर भी है। जहां लोकसभा चुनाव के अनापेक्षित नतीजों से पार्टी में रार के हालात हैं।
** अलीराजपुर पर भारी पड़ा विजयराघवगढ़
प्रदेश सरकार के मंत्री नागर सिंह चौहान से वन विभाग छिनना,उनकी नाराजगी। इसके बाद कटनी से जुड़े खदान के एक प्रकरण का सामने आना।इसमें नागर ने सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस लेने की सिफारिश की थी। जो बाद में निरस्त कर दी गई।
मोटे तौर पर उनके विभाग छिनने की एक बड़ी वजह यही बताई जा रही है।वहीं सूत्रों का दावा है कि खदान का प्रकरण कटनी जिले की विजयराघवगढ़ विधानसभा क्षेत्र से जुड़ा है इस प्रकरण में नागर के विशेष रुचि लेने से हालात’एक म्यान में दो तलवार’वाले बन गए थे। इसके चलते बीच का रास्ता तलाशा गया।
** आर्थिक सशक्तिकरण पर जोर
मप्र कांग्रेस की नई टीम तैयार होने से पहले ही पार्टी ने संगठन के आर्थिक सशक्तिकरण की शुरुआत कर दी है। इसके लिए प्रत्येक कार्यकर्ता से सौ रुपए चंदा लेने का कार्यक्रम बनाया गया है।बड़ा सवाल यह कि जब मैदानी स्तर पर कोई जिम्मेदार पदाधिकारी ही तय नहीं तो चंदे की रकम पीसीसी तक पहुंचे कैसे?
इस तरह की चंदा वसूली के पार्टी के पुराने अनुभव भी कोई बहुत सुखद नहीं है।चर्चा तो यह भी अगले चुनाव के लिहाज से फंड तो पहले ही जमा हो गया। नया चंदा तो सिर्फ रस्म अदायगी है।जाहिर है,सियासत को लेकर कहा भी गया-इसमें जो होता है,वह दिखता नहीं और जो दिखता है,वह वास्तविकता से परे होता है।
** पैर जमाने की कवायद
“जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का। फिर देखना फिज़ूल है कद आसमान का।। ” कुछ इसी जज्बे के साथ समाजवादी पार्टी अब मप्र में भी पैर जमाने की कवायद कर रही है। इसका जिम्मा सौंपा गया है,राजधानी के युवा नेता डॉ.मनोज यादव को। आम कार्यकर्ता से सपा के प्रदेशाध्यक्ष बने मनोज नपे-तुले कदमों से संगठन को मजबूत करने में जुट गए है।
फोकस उन अंचल पर जहां साल 2003 में पार्टी को बड़ी कामयाबी मिली थी। बुंदेलखंड उसकी सियासत का प्रमुख केंद्र होगा। इसके चलते पार्टी ने हाल ही में खुरई के दलित हत्याकांड को भी जोर-शोर से उठाया तो कटनी के मामलों पर भी उसकी नजर रही। बताया जाता है कि पार्टी ने खजुराहो में पांच एकड़ जमीन भी खरीद ली है। जहां वह अपना अगला कार्यालय बनाने की तैयारी में है।
** पढ़ो-कमाओ बजट !
मप्र में एक योजना लागू है,पढ़ो-कमाओ। केंद्र का नया बजट भी ज्यादातर वर्गों के लिए कुछ इसी तरह का है। यानी मुफ्त कुछ नहीं। कर्ज लो,आप भी कमाओ और बैंकों के साथ सरकार को भी दो। विशेष पैकेज वाले राज्यों को छोड़ दें तो मप्र समेत अन्य राज्य सरकारों के लिए भी बजट कुछ इसी तरह का है।केंद्र प्रवर्तित योजनाओं पर काम करो,पैसा लो। इसके चलते ढेर सारे अनुदान से दिन बहुरने की उम्मीद लगाए मंत्रालय के अधिकारियों को अब उन योजनाओं के प्रस्ताव बनाने पर माथापच्ची करनी पड़ रही है,जिनसे मप्र में धन वर्षा हो सके।
**कैसे बने बात?
मप्र में कृषि विभाग के मंत्री एदल सिंह कंषाना समेत अनेक जन प्रतिनिधि इस बात को लेकर परेशान हैं कि उनके इलाके के कई किसानों को सरकार की सम्मान निधि का लाभ नहीं मिल रहा है। प्रदेशभर में ऐसे वंचित किसानों की संख्या छह लाख से ज्यादा है।कारण तकनीकी है,लेकिन जनप्रतिनिधियों के कोपभाजन का शिकार कृषि विभाग के आला अधिकारी हैं। जो किसानों को केवाईसी या पोर्टल पर पंजीयन करना नहीं सिखा सके। बताया जाता है कि शिकायत प्रदेश के मुखिया तक पहुंच गई है।ऐसे में प्रस्तावित फेरबदल में कृषि विभाग के अफसर भी बदले जाएं तो बड़ी बात नहीं।
** अपर सचिव की उड़ान
उप्र,राजस्थान की तर्ज पर मप्र में भी भारी भरकम सीएमओ बना।सीएमओ को वजनदार बनाने का मकसद गुड गवर्नेंस व डिलेवरी सिस्टम को मजबूत करना।लेकिन सीएमओ में अपर सचिव स्तर के एक अधिकारी स्वयं के संबंध मजबूत बनाने में जुट गए। ऐसे में टीम कैप्टन को उन्हें दो टूक लहजे में समझाना पड़ा कि ऊंची उड़ान की जरूरत नहीं। यहां काम चैनेलाइज सिस्टम से ही होगा।
** गले पड़ी कार्यशाला
मप्र ही नहीं देश में संभवतया यह पहला मौका है जब पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने तीन दिनी कार्यशाला आयोजित हुई हो। वह भी निजी क्षेत्र के विषय विशेषज्ञों संग,पूरे समय चिंतन—मनन के साथ। इसका श्रेय जाता है विभाग के दूरदृष्टा मंत्री प्रहलाद पटेल को। कार्यशाला को सरकारी कर्मकांड मानकर चल रहे विभाग के अधिकारी उन फाइलों को खंगाल रहे हैं,जिनसे पंचायतों की दशा वाकई सुधारी जा सके। यह हुआ,पटेल के सख्त निर्देशों से।
बताया जाता है कि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी को तो दो टूक लहजे में यहां तक समझाया गया कि रोडमैप मुताबिक काम नहीं हुआ तो फिर आप स्वयं को साइनिंग अथॉरिटी ही समझो। जिम्मेदारी कोई और मातहत संभाल लेगा। यह कांग्रेस की पंचायत,यह बीजेपी की। काम से बचने यह वर्गीकरण तत्काल बंद कर समग्र विकास पर ध्यान दें। मंत्री के इस सख्त रुख के बाद पंचायत व ग्रामीण विकास में फाइलों का मूव्हमेंट तेज हो गया है।
**हेल्थ की सुधरेगी हेल्थ
आयुष्मान,इसके बाद नर्सिंग घोटाला। परत-दर-परत जिस तरह इन मामलों का खुलासा हुआ,इसे सरकार ने बेहद गंभीरता से लिया हे। चिकित्सा शिक्षा व स्वास्थ्य दोनों विभागों को एक करने के बाद सरकार का फोकस महकमे की प्रशासनिक व्यवस्था सुधारने पर है। ऐसे में विभाग में बड़े फेरबदल के आसार हैं। शुरुआत एसीएस मो.सुलेमान से ही हो सकती है। जो बीते चार सालों से दोनों विभागों की कमान संभालते रहे हैं। दोनों ही बड़े घोटाले उन्हीं के कार्यकाल में हुए।
** किसका पुनर्वास?
मप्र राज्य निर्वाचन आयोग के मौजूदा आयुक्त बीपी सिंह अधिकतम छह माह के एक्सटेंशन पर हैं। माहभर पहले सरकार ने उनका कार्यकाल बढ़ाया।वर्ष 2024 की बकाया अवधि में 5आइएएस सेवानिवृत्त होंगे। इनमें कार्यकाल नहीं बढ़ने पर 88 बैच की वीरा राणा,89 बैच के आशीष उपाध्याय,90 बैच के मलय श्रीवास्तव,इसी बैच के पंकज राग,2004 बैच के रवींद्र सिंह व 2009 के शशिभूषण सिंह।
सूत्रों की मानें तो राज्य निर्वाचन आयोग के नए आयुक्त के तौर पर मौजूदा मुख्य सचिव वीरा राणा को सितंबर में उनका पहली सेवावृद्धि अवधि पूरी होने पर यह दायित्व सौंपा जा सकता है। मौजूदा आयुक्त के एक्सटेंशन आदेश की भाषा भी कुछ यही संकेत दे रही है। यह कुछ इस तरह है..नए आयुक्त की नियुक्ति तक लेकिन अधिकतम 6 माह।
** राजन को मिल सकता बेहतर विभाग
वर्ष 1993 बैच के आईएएस व वर्तमान में मप्र के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी अनुपम राजन को बतौर पीएस कोई बेहतर विभाग मिलने के आसार हैं। सीईओ रहते राजन के कार्यकाल में सभी चुनाव शांतिपूर्ण व व्यवस्थित तरीके से संपन्न हुए। राजन की छवि बेदाग रही है।उनकी गिनती कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों में होती है।
यूं भी,मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय में सेवाएं दे चुके अधिकारियों को अहम विभाग सौंपे जाने की परिपाटी पुरानी है। वर्ष 1988 बैच की अधिकारी वीरा राणा,सलीना सिंह,जयदीप गोविंद,बीएल कांताराव,संजय कुमार मिश्रा सहित ऐसे कई अधिकारी हैं,जिन्हें चुनाव आयोग में सेवाएं देने के बाद बेहतर मुकाम मिला।
** अब मिला फुल टाइम जॉब
वीकेंड व रविवार सरकारी लोक सेवकों के लिए आराम के दिन होते हैं। ऐसे में कोई सरकारी काम आन पड़े तो यह उन्हें बोझिल लगता है। तीन साल पहले इंदौर स्मार्ट सिटी की सीईओ रहते साल 2015 बैच की आईएएस अधिकारी अदिति गर्ग ने छुट्टियों के दिन में काम पर सवाल खड़े कर एक नई बहस को जन्म दे दिया था। इसे लेकर मातहतों ने तो उनका समर्थन किया,लेकिन उनके सवाल पर राजनेताओं की भौंहे तन गई थी। अदिति को इसी सप्ताह मंदसौर कलेक्टर का दायित्व सौंपा गया लेकिन कलेक्टरी ठहरा फुल टाइम जॉब। हर दिन एक जैसा।
बहरहाल,अदिति 2015 बैच की दूसरी अधिकारी हैं,जिन्हें कलेक्टरी मिली। इसी बैच के 15 और अधिकारी अभी कतार में हैं।अदिति प्रतिभावान हैं। इंदौर को कार्बन क्रेडिट से 50 लाख रूपये कमाने का गौरव उन्हीं के कार्यकाल में मिला।आइएएस बनने से पहले वह आइआरएस सेवा में रह चुकी हैं। यूके में पदस्थ रहीं।आइआरएस की सेवा रास नहीं आने पर एक बार फिर यूपीएससी एक्जॉम दिया और 54वीं रैंक हासिल की।
** 6 साल में भी तैयारी नहीं
हाईकोर्ट के आदेश पर मप्र के सहकारिता विभाग ने सूबे की सहकारी समितियों का चुनाव कार्यक्रम तैयार किया। अलग—अलग चरणों में 9 सितंबर तक चुनाव कराने का कार्यक्रम भी तय हो गया। बाद में पता चला कि वोटर लिस्ट यानी समितियों की सदस्यता सूची तो अपडेट ही नहीं है।यानी चुनाव टालने बीते छह साल में फिर एक नया बहाना।दरअसल,मप्र में सहकारी समितियों ,वित्तीय संस्थाओं के आखिरी बार चुनाव साल 2013 में हुए थे। वर्ष 2018 में सभी संचालक मंडलों का कार्यकाल खत्म हो गया। तब से ही इन संस्थाओं में प्रशासक व्यवस्था है। जाहिर है,चुनाव हुए तो प्रशासक यानी अफसर समितियों, बैंकों से बाहर होंगे।