रवि अवस्थी,(Bhopal)// 5June,World Environment Day
बीते दो दशक में मप्र में वनों के सुधार को लेकर शुरू किए गए प्रयास अब रंग ला रहे हैं। मप्र के वन सामुदायिक प्रबंधन कार्यक्रम को संयुक्त राष्ट्र की ” इकोसिस्टम रेस्टोरेशन यूएन दशक 2021-2030″(Ecosystem Restoration UN Decade 2021-203) में शामिल किया गया है। यह उपलब्धि हासिल करने वाला मप्र देश का पहला राज्य है।इसे शिवराज सरकार की बड़ी कामयाबी माना जा रहा है।
दरअसल, विश्व में बिगड़ते पर्यावरण से चिंतित संयुक्त राष्ट्र ने 3 साल पहले अपनी महासभा में ‘इकोसिस्टम रेस्टोरेशन यूएन दशक 2021-2030’ कार्यक्रम घोषित किया था। इसमें समूची दुनिया से सहयोग की अपेक्षा की गई।
इसी क्रम में मप्र वन विभाग ने बिगड़े वनों में सुधार को लेकर किये गए काम व भविष्य की कार्ययोजना सम्बन्धी एक प्रस्ताव भारत सरकार के माध्यम से यूएन के पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी )एवं खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) को भेजा।
प्रस्ताव में प्रदेश में गठित वन समितियों के सहयोग से किये जा रहे सामुदायिक वन प्रबंधन का जिक्र भी किया गया। इसे यूएन ने सराहा व अपने कार्यक्रम में शामिल करने की मंजूरी दी ।
जवाब में भारत सरकार के वन,पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सचिव सुश्री लीना नंदन ने भी अपेक्षित सहयोग का भरोसा दिलाया। इसकी सूचना भी उन्होंने हाल ही में मप्र वन विभाग को भी दी।
विभाग की विकास शाखा प्रमुख ,पीसीसीएफ चितरंजन त्यागी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि इस दिशा में भारत सरकार के माध्यम से शीघ्र ही आगे की कार्यवाही की जाएगी।
** दुनिया के लिए नजीर बनेगा मप्र का वन प्रबंधन
आधिकारिक सूत्रों का दावा है कि उक्त प्रस्ताव को अंतिम रूप मिलने पर मध्यप्रदेश में वन प्रबंधन के क्षेत्र में किए जा रहे कार्य दुनिया के लिए नजीर बनेंगे।
इनके आधार पर अन्य देशों में भी पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्बहाली के लिए काम हो सकेगा।
मप्र में ही अगले 8 वर्षों में 28.03 लाख हेक्टेयर बिगड़े वन क्षेत्र को जनभागीदारी से सुधारने का लक्ष्य है।
प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि बीते कुछ वर्षों के दौरान ही मप्र के 1152 वनग्रामों के अंतर्गत आने वाले 4.31लाख हेक्टेयर क्षेत्र के बिगड़े वन क्षेत्र को सुधारा गया।इसमें वन समितियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही।
** शिवराज सरकार के अहम् निर्णयों ने बदली तस्वीर
सूत्रों की माने तो बीते दिनों प्रदेश के 925 में से 827 वन ग्रामों को राजस्व में बदलने,अनुसूचित जाति कल्याण की दिशा में पेसा एक्ट के प्रभावी क्रियान्वयन की पहल,वनों से प्राप्त राजस्व में 20 प्रतिशत एवं लघु वनोपज से होने वाली आय में वन समितियों की शत-प्रतिशत भागीदारी ,तेंदूपत्ता संग्राहकों की मजदूरी में इजाफा एवं वन समितियों का पुनर्गठन ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय हैं,इनके जरिए सरकार ने वन आश्रितों की आय बढ़ाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में पहल की है।
इससे बिगड़े वन सुधार के लक्ष्य को पाना आसान होगा। राज्य सरकार का अगला कदम उक्त नए राजस्व ग्रामों की भूमि को डि-नोटिफाई करवाना है, ताकि संबंधित भूमि स्वामियों को उसके क्रय-विक्रय के अधिकार भी मिल सकें।
** कार्बन क्रेडिट हासिल करने में रुचि नहीं
गए साल नवंबर में ब्रिटेन के ग्लासगो में संपन्न “काप-26 पर्यावरण सम्मेलन” में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2030 तक भारत में कार्बन तीव्रता 45 प्रतिशत कम करने व वर्ष 2070 तक शून्य करने की घोषणा की थी।
इसके बाद शिवराज मंत्रिपरिषद ने भी उक्ताशय की योजना को मंजूरी दी। इसमें उद्यमियों ,किसानों व स्वयंसेवी संस्थाओं को प्रदेश के बिगड़े वन प्रबंधन के माध्यम से कार्बन क्रेडिट हासिल कर लाभ अर्जित करने के लिए प्रेरित किया गया।
बताया जाता है कि बीते 6 माह में सिर्फ दो विदेशी कंपनियों ने उक्ताशय के प्रस्ताव सौंपे,लेकिन इन पर अंतिम निर्णय नहीं हो सका। राज्य स्थित उद्योगों,संस्थाओं की बात करें तो सिर्फ इंदौर नगर निगम ( वनों में सुधार के साथ ई -व्हीकल व नवकरणीय ऊर्जा उत्पादन में भी उल्लेखनीय उपलब्धि के साथ ) को छोड़ समूचे प्रदेश में स्थिति निराशाजनक है।
अलबत्ता,भोपाल में बरकतउल्ला विवि बायो साइंस विभाग के प्रमुख एवं प्रो.डॉ विपिन व्यास ने विवि परिसर में लगे पेड़ों की कार्बन संग्रहण क्षमता को लेकर शोध कार्य शुरू किया है। यह अभी प्रारंभिक स्थिति में है।


