From the corridor of power: सत्ता के गलियारे से….. मप्र में भी ‘टीना फैक्टर’ का सहारा

सत्ता के गलियारे से…. रवि अवस्थी

Bhopal. From the corridor of power ;राजनीति शास्त्र में अंग्रेजी का एक शब्द है, ‘TINA’ अर्थात ‘ देयर इज नो अल्टरनेटिव ‘(कोई विकल्प नहीं)। वाणिज्य क्षेत्र में भी यह प्रचलित है । इसकी शुरुआत यूं तो 19वीं सदी में उदारवादी विचारक हर्बर्ट स्पेंसर ने अपने सोशल स्टैटिक्स में की थी लेकिन भारत में इसका राजनीतिक उपयोग 1974 में इंदिरा शासन काल में  हुआ ।

तब “इंदिरा इज इंडिया,इंडिया इज इंदिरा ” व ‘टीना’ जैसे नारे बुलंद हुए और तत्कालीन प्रधानमंत्री को इनका लाभ भी खूब मिला। इसकी गूंज ब्रिटेन तक हुई और 1980 में वहां की तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर व 2013 में डेविड कैमरन ने भी अपने पक्ष में यह नारा आगे बढ़ाया। वर्ष 2019 के लोकसभा व उत्तरप्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में भी ‘टीना फैक्टर’ चर्चा में रहा ।

बहरहाल,बात मप्र की , तो मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी अपनी सक्रियता व कड़ी मेहनत से इस फैक्टर को यहां मजबूत किया है । चर्चा यह भी है कि ‘ टीना फैक्टर ‘ ही उनका संबल बना हुआ है।

** खुद की पूछ नहीं दूसरे को न्योता !
 कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की प्रदेश के सियासी हलकों में भी खासी चर्चा है। इससे अधिक चर्चा मप्र कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ द्वारा इस यात्रा से दूरी बनाए जाने की। इसे लेकर भाजपा नेताओं ने उन पर निशाना भी साधा।

हैरत की बात यह कि यात्रा से अब तक दूरी बनाने वाले नाथ ने शनिवार को पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती को इससे जुडने का न्योता दे डाला। सुश्री भारती को फायर ब्रांड नेत्री कहा जाता है।

यात्राएं निकालने में भी उन्हें महारथ है। रविवार को नाथ ने फिर अपनी बात दोहराई लेकिन उमा ने इसे मजाक बताते हुए ख़ारिज कर दिया ।इसलिए कहते हैं न्योता सोच-समझ कर देना चाहिए । भाजपा तो पहले ही इसे भारत तोड़ो यात्रा बता रही है।

** इसे कहते हैं आंखों में धूल झोंकना !
आंखों को लेकर दो कहावत अधिक प्रचलन में हैं – एक धूल झोंकने की तो दूसरी काजल चुराने की ।

जबलपुर के बहुचर्चित यूरिया घोटाले में वहां की लार्डगंज थाना पुलिस ने इनमें से कौन सी कहावत को चरितार्थ किया ? यह तो वही बता सकती है,लेकिन दोनों ही स्थितियों में उसने अपनी उस्तादी साबित कर दी ।

अब यह तो सबको पता है कि मुख्यमंत्री शिवराज के सख्त तेवरों के बाद ही प्रशासन व पुलिस को घोटाले के आरोपियों के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज करना पड़ा ,लेकिन नामजद दर्ज इस प्रकरण में एक प्रमुख आरोपी के नाम को लेकर बड़ी गड़बड़ी है ।

पुलिस ने निजी सहकारी संस्था ‘कृभको’ के पदाधिकारी राजेंद्र चौधरी को आरोपी बनाया है,जबकि कंपनी में इस नाम का कोई पदाधिकारी या अधिकारी ही नहीं । जो चौधरी हैं ,वह अपने सरनेम के  आगे राजन लिखते हैं ।

जो दो राजेंद्र हैं उनमें एक का सरनेम सिंह तो दूसरे का नाम आर. राजेंद्र है । अब गिरफ्तारी किसकी होगी और अदालत में यह गफलत प्रकरण को कितना ठहरने देगी,इसे लेकर संशय बना हुआ है । देखने ,सुनने में चूक छोटी है लेकिन ‘खेल’ बड़ा है ।

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** अपनों के ही निशाने का शिकार हुए बिशप
जबलपुर स्थित बोर्ड ऑफ एजुकेशन ट्रस्ट व चर्च ऑफ नार्थ इंडिया यानी सीएनआई के चेयरमैन बिशप पीसी सिंह अपनों के ही निशाने का शिकार हुए।

मूलतः बिहार निवासी पीसी सिंह उच्च शिक्षा के दौरान ही धर्म परिवर्तन कर पास्टर से फादर,फिर बिशप और सीएनआई के चेयरमैन बने। ‘मूल’ में सेवा की जगह धन की चाहत में उन्होंने चंद सालों में ही अकूत संपदा जुटा ली ।

आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो का छापा पड़ा तो जब्त संपत्ति देखने वालों की आंखे फटी रह गई। पूरा परिवार ही दोनों हाथों से कमाई में लिप्त मिला । क्या कुछ नहीं जुटाया,अब दाऊद से भी तार जुड़े नजर आ रहे हैं ।

जानकारों की मानें तो पीसी की संस्था विरोधी गतिविधियों की शिकायत लंबे समय से की जा रही थी,लेकिन बात जब दिल्ली की एजेंसियां तक पहुंची। इसके बाद ही ब्यूरो बिशप के घर तक पहुंचा।

वर्ना तो कितनी शिकायतें ब्यूरो के मुख्यालय में ही दफन होकर निजी लाभ की भेंट चढ़ जाती हैं । सियासी कारणों से जो दर्ज हैं,उनका हश्र भी किसी से छिपा नहीं । पूर्ववर्ती सरकार में पांच सिंचाई परियोजनाओं के लिए हुए आठ सौ करोड़  के अग्रिम भुगतान मामले का भी यही हाल है ।

** यह कैसा सिला ?
बीते सप्ताह राज्य सरकार ने भाप्रसे के 9 अधिकारियों के तबादला आदेश जारी किए। स्थानांतरित अधिकारियों में सबसे चौंकाने वाला नाम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख सचिव अमित राठौर का रहा।

उन्हें सालभर पहले ही इस विभाग की कमान सौंपी गई थी। अब उन्हें राजस्व मंडल ग्वालियर में बतौर सदस्य पदस्थ किया गया है। वर्ष 96 बैच के राठौर की गिनती नियम-कायदे से काम करने वाले अफसरों में की जाती है।

जानकारों के अनुसार,विभाग की अनुषांगिक संस्थाओं के पदाधिकारियों के मनमाफिक काम में वे बाधा बने हुए थे। संभवतया यही उनके तबादले की बड़ी वजह रही। राठौर सिद्धांतों के भी पक्के हैं।

बताया जाता है कि सरकारी आवास की सुविधा लेने की जगह उन्होंने अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ किराए के आवास में रहना पसंद किया। राठौर को इस तरह अपने घर व सेवा से दूर किए जाने पर उनकी ‘बिरादरी’ भी खुश नहीं है। इसका मानना है कि नौकरी में तबादले सामान्य प्रक्रिया है,लेकिन मानवीय पहलुओं व व्यक्तित्व को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

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