** ऐसी उम्मीद कम से कम भाजपा से तो नहीं 

सत्ता के गलियारे से …. रवि अवस्थी

** ऐसी उम्मीद कम से कम भाजपा से तो नहीं 
प्रदेश में एक बार फिर सत्ता परिवर्तन के कयास जोरों पर हैं । ऐसी अटकलें पहले भी लगाई जाती रहीं हैं । जो निरर्थक साबित हुईं। लेकिन इस बार जोर-आजमाइश पूरी ताकत के साथ जारी है । एक-दो नहीं,कई “उम्मीद” से हैं ।

वहीं जानकारों का मानना है कि नवंबर में हिमाचल तो दिसंबर में गुजरात विधानसभा के चुनाव होने हैं। जम्मू-कश्मीर का नंबर भी लगने की उम्मीद है ।

अब इन राज्यों के चुनाव से पूर्व बिना किसी बड़ी वजह के अच्छी-खासी चलती सरकार को डिस्टर्ब किया जाए,ऐसी उम्मीद कम से कम भाजपा से तो नहीं की जा सकती । यह पंजाब में ही हो सकता है।
बहरहाल,ऐसे मामलों में ज्योतिष की राय भी अहम होती है और प्रदेश की सियासत में रुचि रखने वाले एक ज्योतिषी के अनुसार,मप्र में फिलहाल ‘ऐसे’  कोई योग नहीं,कम से कम इस साल तो बिल्कुल नहीं।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं भी भाजपा अध्यक्ष जे पी नडडा से मिल रहे ‘समर्थन’ पर उनका आभार जता चुके हैं । इसके बाद तो ऐसे कयासों को खारिज किया जाना चाहिए,क्योंकि ऐसी अटकलें सबसे बुरा असर प्रशासनिक अमले के मनोबल पर डालती हैं।

** कसावट का दौर
‘मिशन-2023’ के लिए राज्य के दोनों ही प्रमुख दलों में संगठनात्मक स्तर पर कसावट का दौर जारी है । इस मामले में बड़ी चुनौती कांग्रेस से कहीं अधिक सत्तारूढ दल भाजपा के समक्ष है ।

पार्टी की बडी चिंता अगले विधानसभा व लोकसभा चुनाव को लेकर है । एक तो दो संस्कृति का मेल,जो लाख कोशिशों के बाद एक होता नहीं दिख रहा है ।

इससे व अन्य कारणों से अपनों में उपजा असंतोष नगरीय निकाय व पंचायत चुनाव में सामने आ चुका है । अपेक्षाएं दोनों ही ओर से बहुत हैं,बल्कि कई की महत्वाकांक्षाएं तो कुलांचे मार रही हैं, कैसे मिले पद।

आज जारी पार्टी पदाधिकारियों व कोर ग्रुप की बैठक इस मायने में काफी अहम साबित होने वाली है। बैठक में उन 15 जिलाध्यक्षों को भी बुलाया गया है,जिनकी नगरीय निकाय चुनाव ‘निपटवाने’ में अहम भूमिका रही।

** सतर्कता में ही सुरक्षा
छत्तीसगढ़ भाजपा में हुए हालिया बदलाव के बाद प्रदेश संगठन भी चौकन्ना है । वजह भी है । पार्टी के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल के पास छग के साथ मप्र का दायित्व भी है। संगठन को मजबूत करने छग में जामवाल अपना कमाल दिखा चुके हैं। सूत्रों का दावा है कि उनकी नजर मप्र संगठन पर भी है।

बताया जाता है कि रविवार को होने वाली पार्टी पदाधिकारियों की बैठक में श्री जामवाल को भी शामिल होना था लेकिन ऐन वक्त पर सरगुजा दौरा तय होने से उनका भोपाल आना टल गया । वर्ष अंत या नए साल के शुरुआत में प्रदेश इकाई के चुनाव होना भी तय माना जा रहा है।

संगठन के मौजूदा नेतृत्व के समक्ष अगली चुनौती इसी माह 18 जिलों के 46 नगरीय निकाय चुनाव के साथ खिसकते जनाधार वाले क्षेत्रों में पार्टी को मजबूत करने की भी है।  इनमें विंध्य,बुंदेलखंड,महाकौशल व नर्मदापुरम जैसे गढ भी शामिल हैं।

** दोहरी सियासत के शिकार बैंस
अब न तो थाना प्रभारियों की मैदानी पदस्थापना से मुख्य सचिव का कोई सीधा वास्ता होता है न मंत्री के प्रोटोकॉल से। बावजूद इसके प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने सूबे के प्रशासनिक मुखिया इकबाल सिंह बैंस को लेकर निशाना साधा तो उनके ‘हमकदम’ एक और मंत्री व नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह को भी मौका मिल बैठा।

यह पहला अवसर नहीं है। कुछ साल पहले ही राज्य विधानसभा में भी बैंस की कार्यशैली को लेकर उन पर छींटाकशी की जा चुकी है। दरअसल, बैंस की छवि ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ अफसर की रही और ऐसे अधिकारी कम ही राजनेताओं को रास आते हैं।

उनके मौजूदा कार्यकाल की ही लीजिए,क्या-क्या दुश्वारियां नहीं झेली। मुख्य सचिव बनते ही चंद घंटे बाद कोरोना के कारण लॉकडाउन लग गया। खजाना खाली,दफ्तर खाली,सड़कें वीरान…,चहुं ओर इलाज को लेकर मचा हाहाकार ।

कई मातहत बीमार,यहां तक कि ठीक एक साल बाद वह स्वयं भी इस महामारी की चपेट में आ गए,लेकिन कर्तव्य पथ से  विचलित नहीं हुए। संकट के इस दौर में भी सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रदेश में विकास की गति को आगे बढाया।

नतीजा.. न केवल विकास दर बढी,बल्कि प्रति व्यक्ति आय में भी इजाफा हुआ। अब उनकी सेवानिवृत्ति नजदीक है और सेवाकाल बढ़ाए जाने की अटकलें भी । ऐसे में दावेदारों का बेचैन होना स्वाभाविक है । बैंस के खिलाफ चले ‘अभियान’ को मंत्रालय की सियासत से भी जोड़कर देखा जा रहा है।
** … आस निराश हुई
राज्य मंत्रिमंडल के एक अन्य वरिष्ठ सदस्य भी अपने विभाग के अपर मुख्य सचिव से पटरी नहीं बैठने से परेशान हैं । बताया जाता है कि शुरुआत मंत्री जी की ओर से ही हुई। जैविक खेती से जुड़े एक प्रस्ताव को मंत्री जी ने अनुमोदित नहीं किया तो विभाग प्रमुख इसे ‘ऊपर’ से स्वीकृत करा लाए।

अब मंत्री जी ने एक परियोजना से जुड़े लोगों को प्रदेश स्तर पर प्रशिक्षित करने का प्रस्ताव विभाग प्रमुख को भेजा तो वह इसे रोककर बैठ गए। प्रशिक्षण के पीछे का एजेंडा ‘ऊपर’ बताया जा नहीं सकता और नीचे हालात पहले ही विषम हैं। ऐसे में परेशानी स्वाभाविक है।

** किस्तों में नियुक्ति !
राज्य शासन का जोर आगामी एक साल में एक लाख पदों पर भर्ती को लेकर है। इसके लिए सभी विभागों को त्वरित कार्य योजना बनाकर भर्ती शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं ।

दूसरी ओर पीईबी से चयनित 8 सौ से अधिक ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों को “पहले आओ-पहले पाओ” के आधार पर किस्तों में नियुक्ति दी जा रही हैं । इस भर्ती में जिला विशेष के उम्मीदवारों को चयन में विशेष लाभ देने को लेकर एक समय भारी बवाल भी मचा था ।

** बीच में मैदान खाली
एक और विभागों में निचले स्तर पर भर्ती के दरवाजे खोले गए हैं तो दूसरी ओर दर्जनभर से अधिक महकमे ऐसे हैं,जहां शीर्ष पद का काम संविदा पर तैनात अफसरों से चलाया जा रहा है ।

विशेषकर इंजीनियरिंग क्षेत्र में नियमित अधिकारियों का खासा टोटा है । इनमें नगरीय विकास एवं आवास, जल संसाधन, एनव्हीडीए ,आरआरडीए व आरडीसी जैसे महत्वपूर्ण विभाग शामिल हैं।

इनमें ईएनसी व सीई जैसे शीर्ष पद संविदा अधिकारियों के भरोसे हैं ।

** संघर्ष हुआ फलीभूत
बेरोजगारी यूं तो संघर्ष का ही नाम है,लेकिन रोजगार मिलने पर भी भी हाथ खाली हो तो यह संघर्ष, वेदना बन जाता है ।

वर्ष 2018 में पीईबी से चयनित हजारों शिक्षकों ने यह पीड़ा चार साल भोगी । इस दौरान लाठी,डंडे भी खाए और सियासत का मोहरा भी बनें । भला हो शिवराज सरकार का जिसने इन चयनित शिक्षकों की तकलीफ समझी और अपने वादे को निभाया ।

** महकमा सुधारने की जिम्मेदारी
ज्यादातर भले व्यक्तियों का शराब जैसी चीज से कोई बहुत अधिक वास्ता नहीं होता । विशेषकर लेखन कार्य से जुड़े व्यक्ति।

कुछ अपवादों को छोड अधिकतर इससे दूरी बनाकर ही रहते हैं,लेकिन सरकारी नौकरी की बात ही अलग है। कोई जगह रास न आए तब भी काम तो करना ही है।  अब वर्ष 2007 बैच के आईएएस अधिकारी ओपी श्रीवास्तव जी को ही लीजिए,सरकार ने इन्हें सूबे के आबकारी विभाग का आयुक्त बनाते हुए महकमे को सुधारने की जिम्मेदारी सौंपी है।

** यह भी खूब रही

लोग प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान से कैसी-कैसी अपेक्षाएं रखते हैं,हाल ही में मुख्यमंत्री हेल्पलाइन को मिली एक शिकायत इसकी बानगी है ।  इसमें छतरपुर जिले के एक ग्रामीण ने शिकायत दर्ज कराई कि जिला मुख्यालय में बस स्टैंड स्थित एक होटल संचालक समोसे के साथ कटोरी,चम्मच नहीं देता ।

प्रदेश का खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग अब इस समस्या के निराकरण में जुटा है ।

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