मप्र में मानवता की एक सड़क

सत्ता के गलियारे से… रवि अवस्थी ,2-12-2024 ** मानवता की सड़क

आमतौर पर निर्माण कार्य से जुड़ी इंजीनियर बिरादरी को लेकर एक अलग ही धारणा होती है, लेकिन इंदौर के समीप राऊ -खलघाट मार्ग को लेकर इंजीनियर्स ने मानवीयता को जो परिचय दिया।ऐसा उदाहरण मुश्किल से मिलता है।

मप्र से होकर गुजरने वाला आगरा-मुंबई का यह सबसे व्यस्त मार्ग है। गणपति घाट के समीप,इसका एक हिस्सा ऐसा था,जहां बीते 15 सालों में ही 3650 हादसे हुए। 350 लोगों ने जान गंवाई। 1850 लोग दिव्यांग हो गए। ऐसी पीड़ा किसी को भी झकझोर सकती है।

राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण के अधिकारी भी इससे द्रवित हुए। तय किया,इलाके कि 8.8किमी. के ब्लैक स्पॉट को कैसे भी हो सुगम बनाना है।

प्रदेश के इतिहास में 42 मीटर ऊंचाई का पहाड़ भी काटे। एक नहीं छह। 17 महीने में मार्ग बनाने का लक्ष्य था। 16 में बना डाला। समूचे निर्माण में मानवीयता हावी रही। अब कोई हादसा नहीं। अब सैल्यूट तो बनता है।

** खुदा होने का भ्रम
एक और नेताजी को अजैविक यानी ब्रह्म होने का भ्रम हो गया है,लेकिन यह कांग्रेस से हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे। खड़गे जी का एक वीडियो वायरल हुआ। इसमें वह स्वयं के नाम का हवाला देकर स्वयं को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक खुद को बता रहे हैं। ऐसा भ्रम पहले भी कई नेताओं को हुआ,लेकिन द्वादश ज्योतिर्लिंग दर्शन की कामना रखने वालों कांग्रेस जनों को अब आंध्र के कृष्णा जिले तक जाने की जहमत नहीं उठानी पड़ेगी।

** यह प्रेम व सेवाभाव से ही संभव
उज्जैन में पार्टी पदाधिकारी से मारपीट,रायसेन जिलाध्यक्ष व विधायक के बीच वरिष्ठ नेता के समक्ष तीखी तकरार,रीवा में सांसद वर्सेज विधायक। ये अंदरुनी घटनाक्रम संगठन में बर्चस्व के प्रतीक हैं,लेकिन उन मामलों का क्या जो आमजन वर्सेज नेता या कार्यकर्ता हैं। भोपाल की ही सड़कों पर निकल जाइए। बीसियों जगह अतिक्रमण वह भी रंगदारी के साथ। थानों की गुंडा लिस्ट तब और अब के भेद की तस्वीर बयां करती हैं? दूसरी तरफ,साल भर में हुए तीन उपचुनाव के नतीजों पर गौर करें। क्या कुछ नहीं किया,लेकिन परिणाम? विकल्प पर भरोसा! हालात तो 2023 में भी विकट थे। लाज लाड़ली बहनों ने बचाई। क्या यह हर बार गेम चेंजर होंगी? वक्त है,उन महाप्रभु पर अंकुश लगाने का जिन्हें ‘प्रभुता’ का भाष हो रहा है। स्थायित्व के लिए दिल जीते जाना चाहिए और ये प्रेम व सेवाभाव से ही संभव है। अब जीतते हुए भी संघर्ष करना है, तो वह अलग बात है।
** चट मंगनी,पट ब्याह
चट मंगनी,पट ब्याह। इस कहावत को हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने जर्मनी में चरितार्थ किया। मप्र में निवेश की इच्छुक एसईडीसी कंपनी ने जमीन को निवेश में अड़चन बताया तो यादव ने तुरंत निर्णय लेते हुए कंपनी को अपेक्षित जमीन की स्वीकृति दे डाली। अपने किस्म का यह पहला मामला है जब किसी कंपनी को सात समंदर पार रहते हुए ही सरकार से जमीन मिली हो। दरअसल,यह जज्बा है औद्योगिक निवेश बढ़ाकर मप्र को विकसित राज्य बनाने का। इसके रहते ही प्रदेश के मुखिया डॉ मोहन यादव महज 11 माह के अल्पकाल में विदेश से भी 80 हजार करोड़ से ज्यादा के निवेश प्रस्ताव लाने में सफल रहे। श्रृंखलाबद्ध रीजनल इंडस्ट्रियल कॉनक्लेव ने पहले ही लाखों करोड़ के निवेश प्रस्ताव राज्य की झोली में डाले और अभी जीआईएस दूर है।
** उलझ गए सिंधिया
विजयपुर उप चुनाव प्रचार में अपनी आमद को लेकर दिया गया बयान केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के गले पड़ गया। उन्हें उम्मीद नहीं रही होगी कि अपने ही नहले पर दहला जड़ देंगे। गोया विपक्ष को तो बैठे ठाले सिंधिया पर तंज कसने का मौका मिल गया। बयान पर बयान की बात आई तो सिंधिया ने पल्ला झाड़ लिया। इससे पहले शिवपुरी में एक कार्यक्रम के दौरान मधुमक्खियों के हमले का शिकार हो गए। मधुमक्खी का काटना यूं भी शुभ नहीं माना जाता। बहरहाल,सियासत में उतार-चढ़ाव सामान्य बात है।
** जन्मदिन के बहाने
मप्र में बुंदेलखंड की सियासत कुछ अलग ही रंग में है। सत्ताधारी दल में अंचल के एक पूर्व मंत्री ने अपने बेटे के जन्मदिन के बहाने शक्ति प्रदर्शन कर अपनी ताकत का अहसास कराया। बुलाया विरोधियों को भी लेकिन वे आए नहीं। पहुंचे वे जो अपने थे। वे आए भी और मंच पर नाच-गाकर एकजुटता भी दिखाई। अंचल में बढ़ती यह गुटबाजी अच्छा शगुन तो नहीं कही जा सकती।
** डॉन की छवि
बीते सप्ताह मुख्यमंत्री की विदेश यात्रा प्रदेश की सबसे चर्चित खबर रही। इससे भी अधिक चर्चा में वह वरिष्ठ अधिकारी रहे जो शुरुआती दो दिन मुख्यमंत्री के हर पोज में किसी सतर्क सिक्युरिटी अफसर की तरह उनके पीछे खड़े नजर आए। बताया जाता है कि बाद में किसी ने उन्हें इसकी जानकारी दी। इसके बाद से ही परिदृश्य बदला। हालांकि सारी जमावट साथ गए अन्य अधिकारियों की रही जिनकी बदौलत 78 हजार करोड़ के निवेश प्रस्ताव मिले लेकिन बॉस तो बॉस है। वहीं यात्रा के प्रचार में जनसंपर्क आयुक्त ने अपनी प्रतिभा को एक बार फिर साबित कर दिखाया।
** डीजीपी के लिए उत्तम चयन
बीते सप्ताह साल 1988 बैच के आईपीएस कैलाश मकवाना प्रदेश पुलिस के नए मुखिया बने। मौजूदा शीर्षस्थ अफसरों में मकवाना न केवल सीनियर हैं बल्कि वे पूरी तरह इस पद के लिए डिजर्व करते हैंं। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के चयन को दाद देनी होगी। जिनकी पारखी नजरों ने एक सर्वश्रेष्ठ अधिकारी को चुना।
** गजब की कार्यशैली!
सरकारी तंत्र में कुछ बातें औपचारिक होती हैं। जैसे परेड के साथ डीजीपी की विदाई। कालांतर में इस परिपाटी को बंद करने को लेकर एक आदेश जारी हुआ,लेकिन पालन कभी नहीं हुआ। इसी का हवाला देकर निवर्तमान डीजीपी की सेवानिवृत्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाए उन्हीं के बैचमेट शैलेष सिंह ने। वर्तमान में पुलिस सुधार शाखा के प्रमुख हैं। पुलिस में तो कुछ सुधार हुआ नहीं लेकिन इसी तरह की कार्यशैली के चलते शैलेष अपने सेवाकाल में प्रमुख पदों पर कम रहे। निजी जीवन में भी कई विवादों से घिरे रहे। फरवरी में वह भी रिटायर हो जाएंगे। क्या यादें होंगी उनके साथ ?
** राजन बने एसीएस
मप्र कैडर में साल 1993 बैच के अधिकारी अनुपम राजन एसीएस बने। लगातार तीसरे माह में इस बैच से एसीएस बनने वाले वह तीसरे अधिकारी है। राजन सादा जीवन व कामकाज पर भरोसा रखने वाले अधिकारी हैं। छवि कर्मठ व ईमानदार अधिकारी की। वर्तमान में उच्च शिक्षा विभाग के पीएस और अब एसीएस है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सीएम मोहन यादव की पारखी नजरें उनकी प्रतिभा का किसी और महत्वपूर्ण पद पर उपयोग करेगी।