आदिवासियों का टूटा भरोसा जोड़ना आसान नहीं

सत्ता के गलियारे… रवि अवस्थी,(Janprachar.com).

आदिवासी सालों तक कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा है। बीजेपी इसमें सेंध लगाने की भरसक कवायद कर रही है। बावजूद इसके,उसे अब तक पूरी सफलता मिलती नहीं दिखती। झारखंड व विजयपुर के नतीजे इसकी बानगी है। मप्र के पिछले विधानसभा चुनाव में भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिले।सिर्फ 8सीटें बढ़ी।

मप्र की ही बात करें तो साल 2003 से पहले संघ ने कड़ी मेहनत के बाद आदिवासियों का रुख बीजेपी की ओर टर्न किया था,लेकिन सत्ता पाते ही बीजेपी इसे भुला बैठी।

साल 2018 में लगे झटके के बाद रणनीति में बदलाव आया,लेकिन इस वर्ग के टूटे हुए भरोसे को जोड़ने वाला पेस्ट,बीजेपी अब तक नहीं खोज सकी। जरूरत जमीन से जुड़े लोगों का अपना बनाने की है। विजयपुर के मुकेश मल्होत्रा इसका उदाहरण है,जिसे दिग्विजय सिंह जैसे चाणक्य मौका मिलते ही बीजेपी से झटक ले गए। नतीजा सामने है।

** सियासी दांव-पेंच
राजनीति में कौन अपना,कौन पराया,भेद करना मुश्किल होता है। विजयपुर सीट के पिछले विधानसभा चुनाव में जिस मुकेश मल्होत्रा की रावत ने मदद की। इस बार,उन्होंने ने ही रावत का पटकनी दे दी। इसमें रावत के’अपनों’ का भी खूब साथ रहा।

जो रावत के आने से खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में गुना और हाल के बुधनी उपचुनाव में भी यही सब कुछ देखा गया। जिन्हें गले लगाकर रखा,वहीं इज्जत खाक में मिलाने से नहीं चूके।

** दांव पर लगी साख
चुनाव राजनेताओं की परीक्षा लेते हैं। विजयपुर व झारखंड में ऐसी ही परीक्षा से पुराने जोड़ीदार नरेंद्र सिंह तोमर व शिवराज सिंह चौहान भी गुजरे।

इन चुनाव में दोनों की ही साख दांव पर रही। मेहनत में दोनों ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। यहां त​क कि चौहान ने तो अपनी परंपरागत सीट तक की परवाह नहीं की। नतीजे अनापेक्षित रहे। यही,उनके आगे का सियासी कद भी तय करेंगे।

** किसकी खुलेगी लॉटरी?
मप्र के वन मंत्री राम निवास रावत की चुनावी पराजय व पद से इस्तीफे के बाद मंत्री पद के दावेदार सक्रिय हो गए हैं। लॉटरी अमरवाड़ा विधायक कमलेश शाह की लगेगी जो पूर्व में मंत्री बनते-बनते रह गए थे या फिर नागर सिंह चौहान को मिलेगा अतिरिक्त दायित्व। जिन्होंने पूर्व में मंत्री पद छुड़ाए जाने से नाराज होकर खुद को गृह क्षेत्र तक सीमित कर लिया।

आदिवासियों को साधने के साथ मौका बुंदेलखंड में भी संतुलन बनाने का है। जहां इसकी जरूरत,ज्यादा है।

** मेहनत रंग लाई
मप्र कांग्रेस ने विजयपुर चुनाव पूरी शिद्दत के साथ लड़ा। यह चुनाव कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी की नाक का सवाल भी बना हुआ था।

इसमें उन्होंने बीजेपी के दांव-पेंच से ही उसे शिकस्त दी। हालात का पूरा लाभ उठाया। विजयपुर की जीत उनके लिए संजीवनी साबित होगी। वर्ना,अपनों ने तो आंसू निकालने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।

** चाचा की राह पर जयवर्द्धन
आमतौर पर कांग्रेस सनातन विशेषकर हिंदुओं से जुड़े मामलों पर बोलने से बचती है,लेकिन अब पार्टी के युवा नेता इस मामले में खुलकर सामने आने लगे हैं। हाल ही में विधायक जयवर्द्धन सिंह न केवल बागेश्वर धाम के आचार्य धीरेंद्र शास्त्री की पदयात्रा में शामिल हुए बल्कि यह भी कहा कि यह सनातन धर्म की यात्रा है और हिंदुओं को एकजुट होना ही चाहिए।

यात्रा तो एक सप्ताह की है,लेकिन कांग्रेस विधायक पार्टी की पहले दिन की बैठक छोड़कर यात्रा में शामिल हुए। यानी,यह कहा जा सकता है कि जयवर्द्धन भी अब वक्त के मर्म को समझकर अपने चाचा लक्ष्मण सिंह की राह पर हैं।

** कायम रही परिपाटी
आखिरकार,जिसकी आशंका थी,वह सच साबित हुई। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी टीम की पहली बैठक से कई दिग्गजों ने किनारा किया। न आने की सबकी अपनी वजह हैं। कोई मांगलिक कार्यक्रम में व्यस्त रहा तो कोई अपने पहले से तय कार्यक्रमों में।

एक वरिष्ठ नेता तो जन्मदिन के बहाने शक्ति प्रदर्शन कर अपने कद का अलग ही अहसास कराते नजर आए। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी को भी शायद इस बात का अहसास पहले से रहा हो। यही वजह, कि उन्होंने बैठक का न्योता वक्त से काफी पहले भिजवाया,लेकिन परिपाटी कायम रही।

** बागी बड़े या सियासी दल
राजनीति में बगावत नई बात नहीं है। पहले भी कई नेताओं ने अपने संगठन के खिलाफ झंडा बुलंद किया। इसके चलते उनके खिलाफ कार्यवाही भी हुईं। ‘गद्दारों’ व निष्कासितों को लेकर दोनों ही प्रमुख दल एक बार ​फिर सख्त हैं और इस बार वापसी की गुंजाइश को खत्म बता रहे हैं।

ऐसी कसमें पहले भी खाई गईं,लेकिन वक्त के साथ हालात बदलते सबने देखा। उदाहरण बीसियों हैं। बेहतर है,एक बार सख्त नजीर पेश हो जाए ताकि आगे चुनाव के दौरान बगावत परेशानी का कारण न बनें।

** कुनबा बढ़ाने के फेर में
किसी नए व्यक्ति को परिवार का सदस्य बनाने से पहले काफी सोच-विचार की जरूरत गुनियों ने हमेशा बताई,लेकिन अपना कुनबा बढ़ाने के फेर में बीजेपी ने ज्वाइनिंग अभियान में कुछ ऐसे लोगों को दाखिला दे डाला जो अब पार्टी के लिए मुसीबत बन रहे हैं। मऊगंज इसका उदाहरण है। जहां विधायक प्रदीप पटेल ने प्रशासन के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है।

पटेल बीएसपी छोड़ बीजेपी में आए। वह पूर्व में भगवान श्रीराम को लेकर लिखी गई एक किताब का लेकर भी खासे चर्चा में रहे हैं। इससे पहले वह एएसपी के पैर पड़कर विपक्ष को हमलावर होने का अवसर दे चुके हैं।

सियासत चमकाने का उनका अंदाज अब पार्टी पर भारी पड़ रहा है। अहम बात तो यह,कि पटेल की सियासत चमकते देख,पड़ोसी विधायक भी उनके समर्थन में आ रहे हैं।

** सियासत में सदाशयता

मप्र की दो दलीय राजनीति की एक खूबी यह भी कि दोनों ही प्रमुख दल सार्वजनिक तौर पर भले ही एक-दूसरे के खिलाफ खड़े नजर आएं,लेकिन अंदरखाने ये एक हैं। वही परस्पर सम्मान जो अपनों के लिए होता है।

ऐसी ही नजीर हाल ही में प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप ने पेश की। हुआ यूं कि कांग्रेस नेता कमलनाथ ने अपने जन्मदिन पर कवि कुमार विश्वास को आमंत्रित किया,लेकिन उनकी बुकिंग इसी दिन के लिए उदय प्रताप पहले ही अपने एक कार्यक्रम के​ लिए कर चुके थे।

बीजेपी नेता को ज्यों ही कुमार के’धर्मसंकट’ के बारे में पता चला, उन्होंने तत्काल कुमार को कांग्रेस नेता के प्रोग्राम में पहले जाने की अनुमति यह कहते हुए दी कि नाथ जितने आपके लिए सम्मानीय हैं,उतने ही मेरे लिए भी। मैं अपना कार्यक्रम बाद में कर लूंगा। खास बात यह कि बीजेपी नेता की इस सदाशयता का खुलासा स्वयं कवि कुमार विश्वास ने नाथ के मंच से किया।

** इन्हें भी करें पेपरलेस

मप्र विधानसभा को एक बार फिर ई-सदन बनाने की तैयारी है। इसके तहत सभी सदस्यों को अब पेपर की जगह टैबलेट पर कामकाज करना होगा। बदलते दौर में इसे आवश्यक भी कहा जा सकता,लेकिन जो इस विधा में पारंगत नहीं उनका क्या होगा?

अपेक्षाकृत ज्यादा बुजुर्ग हुई 16वीं विधानसभा में ही करीब 5 दर्जन विधायक कॉलेज नहीं गए। दो तो सिर्फ साक्षर हैं। विधानसभा में ऐसे विधायकों के साथ उनके सहायकों को भी ट्रेंड करेगी। बहरहाल,पेपरलेस विधानसभा की कवायद में विचार उन संस्थाओं,निगम मंडलों के सालाना प्रतिवेदन को लेकर भी किया जाना चाहिए,जो 4 से 5 साल के अंतराल से सदन में सिर्फ औपचारिकता के तौर पर पेश होते हैं और अनुपयोगी बनते हैं।
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** महाकाल का आशीर्वाद

साल 1988 के आइपीएस कैलाश मकवाना अंतत:प्रदेश पुलिस के नए मुखिया बने। अटकलों के दौर के बीच भी उनके चयन होने का भरोसा शुरुआत से ही था। एक तो तय नामों में सबसे वरिष्ठ,इस पर ईमानदार व सख्त अफसर की छवि।

सीएस अनुराग जैन हों या मकवाना। दोनों ही तंत्र में कसावट पर भरोसा रखते हैं। जिसकी,मप्र को फिलवक्त बेहद जरूरत है। मकवाना जी महाकाल के भी अनन्य उपासक हैं और निष्काम भक्ति का प्रतिसाद बेहतर ही होता है।

** अब गुजरात से सीखेंगे विकास
मप्र की ब्यूरोक्रेसी बेहद ब्रिलियंट है। देश को उसने लाड़ली लक्ष्मी,लाड़ली बहना जैसी कई अभिनव योजनाएं दी,लेकिन शायद,यह वक्त का तकाजा है।

20 साल बाद भी,उसे अब गुजरात के अफसरों से सीखना है कि विकास करना कैसे है? बीते दिनों सीएस अनुराग जैन ने स्वयं अहमदाबाद पहुंचकर इसकी बारीकियों को समझा।

** ‘मां’ से अनुराग
इंदौर पुलिस ने हाल ही में मिथाईलीन डीऑक्सी मेथेम्फेटामाइन (एमडीएम) की इंदौर में सप्लाई करने वाले कुछ तस्करों को दबोचा। इससे पहले भोपाल में ड्रग्स उत्पादन करने वाली फैक्ट्री का भंडाफोड़ होने पर प्रदेश के नगरीय विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने नशे के कारोबारियों की ‘मां’ को पकड़ने की चुनौती दी थी।

पड़ोसी राज्य राजस्थान के एक शहर का ठिकाना भी बताया,लेकिन इस सुरागदेही के बावजूद मप्र पुलिस ने ‘मां’ को पकड़ने का साहस नहीं दिखाया। खास बात यह कि इंदौर में जो ड्रग्स पकड़ाया,उसके तार भी राजस्थान से ही जुड़े हैं।

** 16 साल,21कमिश्नर !
राज्य सरकार ने हाल ही में शहडोल व सिंगरौली में पुलिस अधीक्षकों की पदस्थापना में बदलाव किया। पूर्व के सप्ताह में शहडोल कमिश्नर श्रीमन शुक्ला को महज 2माह 23 दिन में बदल दिया गया। शहडोल साल 2008 में संभाग बना और बीते 16 सालों में संभाग के 20 कमिश्नर बदले गए। इनमें पांच कमिश्नर तो बीते 11 माह में ही हटाए गए।

साल 2016 बैच में 50वीं रैंक पाने वाली सुरभि गुप्ता अब शहडोल की 21वीं संभागायुक्त हैं। 2007 बैच के श्रीमन शुक्ला को हटाकर गुप्ता को पदस्थ किया गया। शुक्ला पूर्व गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा के दामाद है। इस नाते शुक्ला अपने कामकाज से ज्यादा अपनी राजनीतिक पहुंच के लिए जाने जाते हैं। उनकी ज्यादातर पदस्थापनाएं स्वैच्छिक रहीं।

दरअसल,शहडोल,रीवा संभाग का अंचल खनिज संपदा से भरपूर है और सियासी तासीर इतनी गर्म कि निजी हित थोड़े भी प्रभावित हुए कि गाज आला अधिकारियों पर गिरती है।

** हाथियों का श्राप
बांधवगढ़ में 11हाथियों की मौत के मामले में प्रदेश के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन वीएन अंबाड़े पर गाज गिरी। शासन ने उन्हें इस पद से हटाकर ​विभाग के इकलौते निगम में पदस्थ किया।

बीते साल 6 चीतों की मौत पर इसी तरह,तत्कालीन चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन जेएस चौहान भी हटाए गए थे। आमतौर पर वाइल्ड लाइफ से जुड़े अफसर ही इस तरह के एक्शन का शिकार होते हैं,वर्ना जंगल का राज तो और भी जगह है।