सत्ता के गलियारे से ..रवि अवस्थी ,Bhopal
** विधायकी पर ‘वेट एंड वॉच’
अमरवाड़ा के विधायक कमलेश शाह ने दल बदल के साथ ही विधायकी से भी इस्तीफा दे दिया,लेकिन विजयपुर से विधायक रामनिवास रावत व बीना विधायक निर्मला सप्रे इस मामले में वेट एंड वॉच की रणनीति अपनाए हुए हैं। वजह,अघोषित होते हुए भी घोषित है। यानी दल बदल की शर्त पूरी हुई तो ठीक वर्ना यू -टर्न।
दोनों विधायकों के इस रुख को देखते हुए मप्र कांग्रेस भी जल्दबाजी के मूड में नहीं है। सदन में संख्या बल,मैदानी राजनीति से ज्यादा अहम जो है।
** लंबा हुआ इंतजार
मप्र में लोकसभा चुनाव चार चरण में संपन्न हो गए। प्रतीक्षा अब 4 जून को आने वाले नतीजों की है..लेकिन इस बार यह इंतजार कुछ अधिक लंबा हो गया। पिछली दफा,पांच दिन बाद ही नतीजे आ गए थे,लेकिन इस बार 21 दिन का लंबा इंतजार।
मामला एक-एक वोट के हिसाब का है,लिहाजा ज्यादातर प्रत्याशी इसी गुणा-भाग में अपना वक्त गुजार रहे हैं। इसी लिहाज से सबके अपने-अपने दावे हैं । चिंता उन्हें ज्यादा जो पहले ही शीर्ष के करीब हैं। जिनके पास खोने को कुछ ज्यादा नहीं,वे तो अब भी बेफिक्र हैं।
** पटवारी की साफगोई
न मौका,न दस्तूर।अब ऐसे में कोई बात सामने आए तो इस पर हैरत होना स्वाभाविक है। मप्र कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने अचानक अपने संगठन को लेकर दो टूक बात कही। पहली संगठन की कमजोरी को दूर कर इसमें सुधार तो दूसरी पराजय के लिए बीजेपी को जिम्मेदार न मानना। उनकी इस साफगोई को लोकसभा के नतीजों से पहले की सफाई माना जा रहा है। इसके जरिए पटवारी ने यह जताने की कोशिश भी की कि आगे सब कुछ ठीक रहा तो वह जल्दी ही संगठन को मजबूत करने की दिशा में भी काम करेंगे। जाहिर है,संदेश तो शीर्ष नेतृत्व के लिए ही है।
** बदलाव की चर्चा
मप्र बीजेपी में एक बार फिर अध्यक्ष के बदलाव की अटकलें हैं। मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सालभर पहले अपने तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। इस दरम्यान उन्होंने संगठन को मजबूत करने की दिशा में अनेक सफल कदम उठाकर अपनी कार्यकुशलता का लोहा मनवाया। संगठन में मप्र इकाई की पहचान एक आदर्श इकाई के रूप में स्थापित हुई। उपचुनाव हों या आम चुनाव शर्मा के कार्यकाल में पार्टी ने नए कीर्तिमान गढ़े।
नए प्रदेशाध्यक्ष को लेकर अनेक नाम चर्चा में है। कमान किसी के हाथ में रहे लेकिन यह तय है कि आने वाले दिनों में संगठन नेतृत्व के सामने एक बड़ी चुनौती नए,पुरानों के बीच सामंजस्य बैठाने की होगी।
** …तब दौर और था
चुनाव में असली-नकली वीडियो की भरमार है। एआई के इस दौर में कौन सा घटनाक्रम तिल का ताड़ बनकर सोशल मीडिया पर बूम करता दिखे..कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसा ही एक वाकया राजधानी भोपाल के एक शायर के साथ हुआ।
उनकी तीन दशक पुरानी एक रचना हाल ही में अचानक सोशल मीडिया पर मय तराने के गूंजने लगी। शायरी के बोलों के लिहाज से यूजर्स ने भी इसे हाथों-हाथ लिया तो कुछ को इसके दुष्परिणाम की चिंता सताने लगी।
उधर,सोशल मीडिया पर रचना के बोल गूंजे,उधर शायर का चैन छिन गया।पोस्ट हटाने धमकी भरे फोन कॉल आना शुरू हो गए।पोस्ट अब शायर ने की हो तो हटाएं। फिलहाल, वे उस वक्त को याद कर रहे हैं,जब उन्होंने यह रचना तैयार की थी। तब दौर और था..।
** विधायक की पीड़ा
गुना से सत्तारूढ़ दल के विधायक पन्नालाल शाक्य अपने निर्वाचन क्षेत्र में होते सियासी अतिक्रमण से परेशान हैं।
उन्होंने अपनी पीड़ा जताते हुए मीडिया से कहा-हमसे का भूल हुई,आखिर क्यों हो रहा है हमसे ऐसा पक्षपात? गुना के प्रतिनिधि तो हम हैं न। तो प्रशासन हमारी सुने। आस पास कोई नहीं है। हम ही हैं। जिनकी सत्ता छिन गई है। वो तड़प रहे हैं।” अब शाक्य या तो अपने आस-पास होने वाली आहट को सुन नहीं पा रहे हैं या सुनना नहीं चाहते।
** खिचड़ी ने कराया निलंबित
चुनाव ड्यूटी में तैनात कर्मचारियों का दर्द भी वही समझ सकता है,जो भुक्त भोगी है। दतिया में एक महिला आईएएस ऑब्जर्वर का लाइजनिंग अधिकारी व सर्किट हाउस एसई सिर्फ इस बात पर सस्पेंड हो गए,क्योंकि वे आब्जर्वर की इच्छानुरूप उन्हें खिचड़ी दूसरी बार परोसने में देर कर बैठे। दरअसल,महिला अधिकारी ने डिनर में खिचड़ी खाने की इच्छा जताई।खिचड़ी पकी,सर्व हुई,लेकिन कम पड़ गई। दूसरी बार,पकाने का जतन हुआ तो रसोई गैस सिलेंडर ने जवाब दे दिया।जैसे-तैसे खिचड़ी पकी लेकिन महिला अधिकारी को ‘बीरबल’ वाला यह अंदाज पसंद नहीं आया। अगले दिन आब्जर्वर की शिकायत पर जिला कलेक्टर ने दोनों को निलंबित कर दिया।
** समय-सीमा तय करे ईसी
चुनाव में लोक सेवक का निलंबन बिना जांच बेहद तत्परता से किया जाता है। लेकिन ऐसे प्रकरणों में बहाली की प्रक्रिया उतनी ही जटिल। दरअसल,ज्यादातर मामलों में निर्वाचन आयोग व इसकी सबसे अहम कड़ी जिला निर्वाचन अधिकारी का नजरिया, “चुनाव खत्म,बात खत्म” वाला होता है। दूसरी तरफ,चुनाव में निलंबित के मामले में उसका विभाग भी हाथ नहीं डालता। लिहाजा आयोग को आदर्श आचार संहिता की तरह निलंबन की समय-सीमा भी तय करनी चाहिए,ताकि यह सजा कष्टदायक ने बने।
** खौफ पैदा करने की कवायद
” फितरतन अदब से आदाब क्या कर लिया उन्हें,वो हमारी कमर को कमजोर समझने लगे।” यह शेर इंदौर नगर निगम पर सटीक बैठता है। शहर को स्वच्छता में नंबर वन बनाने पर निगम को तारीफ क्या मिली,मनमानी की उसे जैसे छूट मिल गई।
भ्रष्टाचार के लिए बदनाम निगम का नया कारनामा अपने 560 कर्मचारियों को सेना की वर्दी पहनाने का है। माना जा रहा है कि अमले को सेना की वर्दी में लाने का असल मकसद लोगों में खौफ पैदा करने का है,लेकिन चौतरफा विरोध के बाद निगम को इसे वापस लेना पड़ा।अलबत्ता नई ड्रेस का खर्चा जरूर इंदौर वासियों के माथे पड़ गया।