बीजेपी संकल्प पत्र 2024…विकास व शिक्षा,बीते दिनों की बात

सत्ता के गलियारे से..रवि अवस्थी,Bhopal
** बदली प्राथमिकता
वक्त के साथ व्यक्ति ही नहीं राजनीतिक दलों की प्राथमिकता भी बदल जाती हैं। बीजेपी के नए संकल्प पत्र को ही लीजिए,पार्टी ने 2009 के घोषणा पत्र में गाय शब्द का उपयोग 24 बार किया था। अब यह शब्द कोई मायने नहीं रखता।

पार्टी ने 2009 के घोषणा पत्र में भ्रष्टाचार शब्द का जिक्र 48 बार किया था तो इस बार सिर्फ 3 बार। ऐसे ही पहले विकास शब्द का उपयोग 248 दफा था। नए घोषणा पत्र में यह सिर्फ 51 बार है।

इसी तरह, महंगाई की बात 6 बार से कम होकर 1 बार ही रह गई। चुनाव का नारा बना ‘ज्ञान’ यानी गरीब,युवा,किसान व महिला शब्द का उपयोग भी पिछले संकल्प पत्र की तुलना में 16 पायदान नीचे खिसक गया।

विकास व शिक्षा की प्राथमिकता भी अब बीते दिनों की बात हो गई है।विकास सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर में देखा जा सकता था। इस शब्द का उपयोग संकल्प पत्र में पिछली बार 38 बार था इस दफा 59 जगह। ये शब्द भारत के अगले 5 साल के रोडमैप के सूचक कहे जा सकते हैं।

** गढ़ी नई चौपाई
“जाके प्रिय न राम बैदेही।तजिये ताहि कोटि बैरी सम,जदपि परम  सनेही।।विनय पत्रिका में वर्णित इस चौपाई का भावार्थ यही है कि जिनके हृदय में न राम,न सीता।ऐसों को त्याग देने में ही भलाई है। बताया जाता है कि यह चौपाई महाकवि तुलसीदास ने मीराबाई के एक पत्र के जवाब में लिखी थी..
लेकिन मप्र में बीजेपी ज्वाइनिंग कमेटी के संयोजक डॉ नरोत्तम मिश्रा ने नई चौपाई गढ़ इसे लोकसभा चुनाव से जोड़ दिया है। इसके जरिए वह कह रहे हैं…‘जाके प्रिय न राम-वैदेही,ताको वोट कदापि न देही’।

** सियासत की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा
सियासत है ही दूसरे को किनारे कर आगे बढ़ने का नाम।अब ऐसे में शुचिता की उम्मीद तो बेमानी है,लेकिन मप्र बीजेपी ने इस मामले में भी एक नई नजीर पेश की है।बात हो रही है,पार्टी के लोकसभा प्रत्याशियों की। जिनके बीच होड़ है जीत के अधिकाधिक मार्जिन की।
जिसकी जितनी बड़ी जीत,वह उतना बड़ा सिकंदर।यही वजह है कि लंबे अरसे बाद लोकसभा चुनाव लड़ रहे पूर्व सीएम शिवराज अपना ज्यादातर वक्त विदिशा में दे रहे हैं तो बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा व भोपाल से आलोक शर्मा पार्टी के पुराने रिकॉर्ड को तोड़ने का जतन कर रहे हैं।

** प्रत्याशी से सरोकार नहीं
मप्र कांग्रेस में नेतृत्व बदला लेकिन गुटबाजी की संस्कृति नहीं बदलीं। प्रत्याशी चयन को लेकर जो रस्साकशी चली, वह किसी से छिपी नहीं है। नया मामला धार से पार्टी के प्रत्याशी राधेश्याम मुवेल से जुड़ा है। मुवैल नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के करीबी बताए जाते हैं।

मुवैल की जगह जयस नेता महेंद्र कन्नौज का नाम उछाल कर एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश हुई। पहली अहम को आहत करने की तो दूसरी गढ़ में एक नया प्रतिस्पर्धी तैयार करने की।जो सिंघार कभी नहीं चाहेंगे।

** यहां नाथ वर्सेज बीजेपी
यदि यह कहा जाए कि मप्र में कांग्रेस सिर्फ 27 सीटों पर चुनाव लड़ रही है तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगा। छिंदवाड़ा को लेकर तो हालात कुछ ऐसे ही हैं।

जहां बीजेपी के चक्रव्यूह में घिरे कमलनाथ अकेले ही संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। प्रचार समाप्ति की ओर है,लेकिन अब तक पार्टी का एक भी बड़ा स्टार प्रचारक नेता अपने अधिकृत प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करने छिंदवाड़ा नहीं पहुंचा।

** खुन्नस पुरानी है
पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह ने एक बार फिर भिंड कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव पर निशाना साधा है। इस बार उनकी शिकायत लोकसभा चुनाव को लेकर है।निर्वाचन आयोग की दी शिकायत में कांग्रेस नेता ने जिला कलेक्टर पर बीजेपी के एजेंट की तरह काम करने का आरोप लगाया है। जानने वाले समझ रहे हैं कि कलेक्टर से डॉ.साहब की  खुन्नस पुरानी है।

बीते विधानसभा चुनाव के दौरान भी डॉ.सिंह  ने जिला कलेक्टर के खिलाफ अनेक गंभीर आरोप लगाते हुए ईसी को शिकायत की थी। कलेक्टर का तो कुछ नहीं बिगड़ा। डॉ.साहब चुनाव हार गए।इसके बाद उन्होंने भविष्य में चुनाव नहीं लड़ने का दावा भी किया था,लेकिन पराजय की टीस उनके मन में अब भी बनी हुई है।

** देर आईं,दुरुस्त आई
2018 बैच की पूर्व राप्रसे अधिकारी निशा बांगरे देर से ही सही लेकिन दुरुस्त आईं।उन्होंने न केवल नौकरी पर वापसी का मन बनाया बल्कि राजनीतिक दल से भी नाता तोड़ लिया। निशा के सामने लंबा करियर है।वह प्रतिभावान महिला हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार भी उनकी प्रतिभा का सम्मान कर एक नई नजीर पेश करेगी।