रवि अवस्थी,भोपाल। मप्र में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 35 सीटों में उज्जैन जिले की घट्टिया विधानसभा भी एक है..मालवांचल का यह हिस्सा भी बीजेपी के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है..इसके चलते यहां अब तक हुए 10 चुनाव में 6 बार कमल खिला..जबकि कांग्रेस को सिर्फ 4 बार ही जीत नसीब हुई..आइए देखते हैं एक रिपोर्ट
जिला मुख्यालय की आवोहवा से यह इलाका भी अछूता नहीं.
घट्टिया उज्जैन जिले की एक स्वतंत्र तहसील..इसके नाम पर ही बनी यहां की विधानसभा..कहने को यह अनुसूचित जाति बाहुल्य ग्रामीण क्षेत्र है लेकिन उज्जैन शहर से सटे होने के कारण जिला मुख्यालय की आवोहवा से यह इलाका भी अछूता नहीं..आरक्षित सीट होने के बावजूद यहां भी सियासत के कई रंग नजर आते हैं.. कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ही दलों की क्षेत्रीय सियासत में दांव पेंच,गुटबाजी व प्रतिस्पर्धा भी यहां खूब देखी जा सकती है..एक समझौते के तहत कांग्रेस नेता प्रेमचंद्र गुड्डू ने बीजेपी का दामन थामकर अपने बेटे को इस आरक्षित सीट से मैदान में उतारा..लेकिन घट्टिया के मतदाताओं को यह समझौता रास नहीं आया..अजीत घट्टिया तो हारे ही बदले में छोड़ी गई रतलाम जिले की आलोट सीट भी बीजेपी गंवा बैठी..इस तरह यह समझौता उसे दो सीट पर भारी पड़ा..जबकि घट्टिया को बीजेपी का गढ़ माना जाता है.. वर्ष 1977 से 2018 तक इस सीट के लिए हुए 10 चुनाव में बीजेपी 6 बार चुनाव जीती..जबकि कांग्रेस को सिर्फ चार बार ही यहां जीत नसीब हुई…इसमें वर्ष 2018 का चुनाव भी शामिल है..इसमें कांग्रेस के
रामलाल मालवीय ने बीजेपी के अजीत बौरासी को 4,628 मतों से शिकस्त दी..बीएसपी के नाथूलाल धोलपुरे 2,618 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे…रामलाल मालवीय इसी सीट से पहले भी दो बार विधायक रह चुके हैं…
घट्टिया सीट से अब तक चुने गए विधायक एवं उनके दल
1977: गंगाराम परमार जनता पार्टी
1980: नागुलाल मालवीय बीजेपी
1985: अवंतिका प्रसाद कांग्रेस
1990: रामेश्वर अखण्ड बीजेपी
1995: रामेश्वर अखण्ड बीजेपी
1998: रामलाल मालवीय कांग्रेस
2003: नारायण परमार बीजेपी
2008: रामलाल मालवीय कांग्रेस
2013: सतीश मालवीय बीजेपी
2018: रामलाल मालवीय कांग्रेस
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बीजेपी को समझौता पड़ा महंगा,गंवाई दो सीटें
पिछले चुनाव में बीजेपी को मिली हार को उसकी अंदरूनी कलह का नतीजा माना गया..दरअसल,पूर्व विधायक सतीश मालवीय स्वयं ही पिछले चुनाव में भी टिकट के दावेदार रहे..इनके अलावा पूर्व विधायक नारायण परमार,रामनारायण चौहान, पूर्व जनपद सदस्य प्रताप करोसिया,गोविंद शर्मा व शंकरलाल अहिरवार भी दावेदारों में शामिल रहे..
लेकिन ऐन वक्त पर आलोट से कांग्रेस के अजीत बौरासी को बीजेपी का प्रत्याशी घोषित किए जाने से यहां बाहरी प्रत्याशी मुद्दा बना और बीजेपी को यह दांव महंगा पड़ा…उसे 2013 में जीती हुई सीट गंवानी पड़्री…अजीत की अपने पिता प्रेमचंद के साथ कांग्रेस में वापसी हो चुकी है..इसके बाद बीजेपी में यहां एक बार फिर नए समीकरण बने है..वहीं कांग्रेस में भी मौजूदा विधायक के साथ ही सरपंच रहे जगदीश ललावत,सुरेंद्र मरमट,करण कुमारिया भी टिकट के दावेदारों में शामिल हैं… देखा जाए तो दोनों ही दलों में टिकट के दावेदारों की कमी नहीं है..ऐसे में चुनाव के दौरान दोनों ही दलों में गुटबाजी से इंकार नहीं किया जा सकता…