रवि अवस्थी //वह दौर और था जब प्रदेश में थोकबंद तबादले होते थे और विपक्ष ने इन पर उद्योग का तमगा लगा दिया था,लेकिन हालात अब अलग हैं। प्रशासनिक व्यवस्था पर लगे इस दाग को धोने का श्रेय बहुत हद तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जाता है। यूं तो उन्होंने अपने 11 साल के शासनकाल में अनेक बुराईयों को दूर करने के जतन किए। फिर वह बाल विवाह की कुप्रथा हो या कन्या भ्रूण हत्या के मामले। मुख्यमंत्री की पहल पर राज्य शासन द्वारा किए गए प्रयासों से इन बुराईयों के खिलाफ समाज में खासी जागरूकता आई। बालिकाओं को सुरक्षा व संरक्षण तथा उनके समग्र विकास की अवधारणा को बढ़ावा दिए जाने का ही नतीजा है,कि अब गोद लिए जाने वाले बच्चों में बालिकाओं की तादाद बालकों से कहीं ज्यादा है।
बहरहाल,यहां चर्चा हो रही है तबादलों क ो उद्योग के दाग से मुक्ति की। शासन-प्रशासन पर लगे इस दाग को धोने में मुख्यमंत्री का रुख शुरुआत से ही सख्त रहा है। न केवल कर्मचारियों बल्कि अधिकारिक स्तर के फेरबदल में भी वह आमतौर फिर किफायत ही बरतते रहे हैं। तंत्र के प्रति उनकी उदारता व भरोसे का ही नतीजा है,कि बीते एक दशक में कर्मचारियों को कोई बड़ा आंदोलन करने का मौका नहीं मिला। कर्मचारी वर्ग में असंतोष खत्म हुआ तो इसका लाभ सरकार और सत्तारुढ़ दल को भी मिला।
थोकबंद तबादलों पर लगाम लगाने के लिए इस प्रक्रिया को सरल बनाया गया। एक मौसम विशेष में स्थानांतरण करने की बजाए इसकी निरंतरता कायम की गई। जरुरतमंद अधिकारी,कर्मचारी को अवसर दिया गया,कि वह मुख्यमंत्री समन्वय शाखा के माध्यम से अपने तबादले का आवेदन कभी भी दे सकता है। स्वयं मुख्यमंत्री की निगरानी में इस तरह के तबादले पूरे साल किए जाते रहे। इससे दलाली प्रथा पर अंकुश तो लगा ही तबादले के नाम पर कर्मचारी भी प्रताड़ित होने से बचे। वहीं तबादलों पर लगा उद्योग का दाग भी धोया जा सका। इस मामले में श्री चौहान के सख्त रुख का आंकलन इसी बात से किया जा सकता है,कि बीते दो सालों में उन्होंने विभागीय स्तर के तबादलों पर लगे प्रतिबंध को शिथिल नहीं किया।
जबकि बीते साल चुनावी वर्ष होने के कारण यह कयास भी लगाए जाते रहे ,कि सरकार जनप्रतिनिधियों की मंशा का ख्याल रखते हएु इस तबादलों पर लगे प्रतिबंध को हटाएगी ,लेकिन ग्रीष्मकाल का पूरा सीजन निकलने के बाद भी प्रतिबंध न हटने पर तबादलों क ी राजनीति के सहारे अपनी दशा सुधारने वाले नेता कश्मशा कर रह गए। मौजूदा वित्तीय साल में भी विभागीय स्तर के तबादलों पर लगी रोक हटाने से पूर्व मुख्यमंत्री ने सभी विभागों को अपनी तबादला नीति बनाने के निर्देश दिए। इन नीतियों की समीक्षा के बाद ही पहले चरण में महज 15 मई तक ही आवश्यक तबादले करने की अनुमति दी गई। मंगलवार को संपन्न राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में जब कुछ मंत्रियों ने पार्टी के सुराज सम्मेलन में व्यस्तता का हवाला देकर तबादलों की अवधि दस दिन बढ़ाए जाने की वकालात की तो अपने सहयोगियों की भावनाओं को देखते मुख्यमंत्री ने महज चार दिन की मोहलत बढ़ा कर यह संदेश दिया ,कि तबादलों क ो लेकर उनका रुख अब भी वही पुराना है। उनके इस संकेत के बाद केवल आवश्यक तबादले ही हो पाने के आसार है। यह भी तय है,कि सभी जरूरी तबादलों का यह काम भी इसी माह में पूरा हो जाएगा। यह व्यवस्था स्थानांतरित होने वाले अधिकारी,कर्मचारियों के लिए भी सहूलियत वाली साबित होगी। वहीं इस तरह की सख्ती से प्रशासनिक व्यवस्था में राजनैतिक दखलंदाजी में भी कमी आएगी।
